Research Paper on Progressive Elements in Abhimanyu Unnuth’s Lal Pasina

अभिमन्यु अनत कृत लाल पसीना उपन्यासमें प्रगतिशील चेतना

Dr Vinaye Kumarduth Goodary,

Senior Lecturer, MGI, Mauritius

अभिमन्यु अनत मॉरीशसीय हिंदी साहित्य के एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उन्होंने यहाँ के हिंदी साहित्य को अपनी साहित्यधर्मिता से स्फुरित किया ही नहीं बल्कि लेखन के इस क्षेत्र में आने वाले रचनाकारों के लिए सुगम राह भी तैयार किए हैं जिनमें चलकर आज अनेक ऐसी स्तरीय रचनाएँ प्रकाश में आ रही हैं जो विश्व हिंदी साहित्य में मॉरीशस की पहचान अधिक सुदृढ़ बनाती जा रही हैं। अनत को यदि मॉरीशस के हिंदी साहित्य के गुरु  कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। अनेक विधाओं में लिखने वाले अभिमन्यु अनत की साहित्यिक उपलब्धियों से अत्यंत प्रभावित होकर मॉरीशस-मित्र तथा स्थानीय साहित्य की गहरी जानकारी रखने वाले गोयनका, कमलकिशोर (1999, भूमिका, पृ. 12)1 ने उनकी साहित्यिक प्रतिबद्धता की प्रसंसा की।

मॉरीशस का हिंदी साहित्य यदि इस देश से बाहर भारत तथा अन्य देशों में पहचाना गया तो इसमें अभिमन्यु अनत का बहुत बड़ा योगदान रहा है। वस्तुत: अभिमन्यु अनत हमारे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं से भारतीय बुद्धिजीवियों को मॉरीशस से परिचित करवाया। तिवारी, श्यामधर (1984-1985)2 के ग्रंथ से सिंह, त्रिभुवन(भूमिका) के शब्दों में अनत भारत के एक सांस्कृतिक मित्र भी हैं। अभिमन्यु अनत अपने आप में सृजनात्मकता की एक संस्था है। गुप्त, गणपतिचन्द्र (1984-85, प्राक्कथन)3 ने अनत की साहित्यिक-साधना का विस्तृत परिचय दिया है इसी दिशा में दी है।

वस्तुत: अनत पर अपने शोध-प्रबन्ध लिखते समय तिवारी, श्यामधर (1984-1985)4 द्वारा लिखित ‘अभिमन्यु अनत: व्यक्तित्त्व  और कृतित्त्व’ मेंसिंह, त्रिभुवन(भूमिका) नेजो विचार प्रस्तुत किए थे कि विदेशी आप्रवासी साहित्यकारों की कृतियों को साहित्येतिहास-लेखन में यथोचित स्थान दिया जाना चाहिए, आज अनत की सतत् साहित्यिक प्रतिबद्धता को दृष्टि को ध्यान में रखते हुए, साकार हो रहा है। अनत का संबंध भारत से सांस्कृतिक स्तर पर अधिक रहा है। वे स्वयं कहते हैं कि मॉरीशस मेरी जन्मभूमि है और भारत मेरे संस्कृति की धरती। अनत का सम्पूर्ण साहित्य मॉरीशस की मिट्टी की सोंधी गन्ध से व्याप्त है (तिवारी, श्यामधर. 1984-1985, भूमिका)5

अपने देश के सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त औपन्यासिक मंच प्रदान करते हुए अभिमन्यु अनत ने भारतीय आप्रवासियों की विकट जीवन-शैलियों से लेकर, शोषण, राजनीति, धर्म, संस्कृति, पश्चिमीकरण, वैश्वीकरण, पूंजीवादी मानसिकता और बाज़ारवाद जैसे विभिन्न विषयों को अपनी रचनात्मक परिधि में उकेरा है। डॉ हेमराज निर्मम (1993)6 द्वारा लिखित मॉरीशस में हिंदी उपन्यासों का मूल्यांकन  इस देश के श्रमिक वर्गों की परिस्थितियों का परिचय देते हुए उनके संघर्ष तथा सोलह स्थानीय उपन्यासों का समग्र परिचय देती है। डॉ शारदा पोटा (1996)7 ने अपनी पुस्तक अभिमन्यु अनत का कथा साहित्य द्वारा लेखक पर किए गए शोधकार्यों को विस्तार दिया। इनके अतिरिक्त जनार्दन कालीचरण (2001)8  ने अपनी पुस्तक में लेखक के आठ उपन्यासों का परिचय देते हुए उनमें ऐतिहासिकता के अनेक तत्त्वों का उल्लेख किया।  इन सभी के आधार पर, इस शोध लेख में अभिमन्यु अनत द्वारा रचित उनके बहु-चर्चित उपन्यास लाल पसीना  में प्रगतिशील चेतना की कुछ झलकियाँ दिखाते हुए उनका विश्लेषण किया जाएगा।

लेखक की प्रगतिशील चेतना को समझने की आधारभूमि इतिहास में भारतीय आप्रवासियों के यातनापूर्ण परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है जिनपर रचनात्मकता का मुख्य स्वर शोषण है। शोषण वास्तव में प्रगतिशीलता का एक मुख्य आधार है। Fields, Belden, A (2003, pp.  80-81)9  शोषण को सत्ता के दुरूपयोग के परिणाम में देखते हैं जो विविध आयामों द्वारा जनित है।  शोषण का विस्तृत चित्रण लाल पसीना के संदर्भ में इसलिए हुआ है क्योंकि शोषण के आधार पर ही प्रगतिशील चेतना का स्वरूप सामने आ सकता है।शोषण का चित्रण अब साहित्य में इस ढंग से भी किया जाने लगा है कि उससे प्रेरणा ग्रहण करके आधुनिक पाठक अपनी स्थिति को पहचानकर जागृति की अवस्था में आ सके। शोषण में वह शक्ति है जो मनुष्य को क्रियाशील व संघर्षशील बनने की प्रेरणा देती है। और शोषण के विरोध में अनत ने अपने साहित्य में खूब लिखा है। गौतम, लक्ष्मणदत्त (1972, पृ. 46)10  ने आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी के कथन का उल्लेख करते हुए साहित्य द्वारा इसी सामूहिक मुक्ति पर प्रकाश डाला है।

अभिमन्यु अनत लाल पसीना  में  मॉरीशस के इतिहास के यथार्थ-बोध को अपने पाठकों के समक्ष रखने की सफल चेष्टा करते हैं। साहित्यिक इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखाने वाले किसन, कुन्दन और मदन जैसे पात्र इसी शोषण से भरे परिवेश का नंगा चित्र उतारते हैं। उपन्यासकार इन पात्रों को हारते-गिरते हुए भी नित्य संघर्ष करने की अवस्था में प्रस्तुत करते हैं और इनके साथ भविष्य में शोषणरहित वातावरण के सपने जुड़े हुए हैं। कथा और चरित्र नियोजन की इस दृष्टि से अनत प्रगतिशील साहित्यकारों की परम्परा को आगे बढ़ाते हैं।

प्रगतिशील चेतना को अभिमन्यु अनत ने अनेक स्तरों पर हमारे सामने रखा है। अपने औपन्यासिक कथा-संगठन के मध्यम से अथवा अपने पात्रों के संघर्ष और यथास्थिति को अस्वीकार करने के परिप्रेक्ष्य में लेखक ने अपनी रचनाओं का सृजन किया है। अनत स्वयं प्रगतिशील विचारों के वाहक हैं। अपने साहित्य को अपने युग और विशेषकर उसमें मॉरीशस की स्थानीयता को अहम स्थान देते हुए लेखक ने अपनी इस उपलब्धि का प्रमाण दिया है। अपनी रचनाओं के कथा-शिल्प में विविधता लाने का प्रयास लेखक के मुख्य साहित्यिक उद्देश्यों में से है। अनत की रचनाएँ मॉरीशसीय जन-जीवन का जीवित दस्तावेज़ है। उन्होंने अपनी कृतियों में समाज के परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए उसमें नई संस्कृतियों के हस्तक्षेप पर भी कलम चलाई है।

लाल पसीना की कथावस्तु भारतीय आप्रवासियों की कठोरतम जीवन-स्थितियों को हमारे सामने इस पारदर्शिता के साथ लाती है जहाँ से पाठक अपनी जड़ों का पुनर्स्मरण करके अपने पूर्वजों के संघर्ष और दासत्व से मुक्ति पाने की शक्ति को आज भी ग्रहण कर सके। मॉरीशस स्वतंत्र हो चुका, यहाँ अपने ही लोग राजनैतिक बागडोर सम्भाल रहे हैं तब भी पूँजीपति-वर्ग का शासन बराबर है। हाँ! प्रगति तो हुई है, लोग अपने अधिकारों से परिचित हैं और इसका मूल कारण शिक्षा की प्राप्ति है परंतु अब भी हम एक पूँजीवादी संस्कृति के अवशेषों को अप्रत्यक्ष रूप से अपनी जेहन में अनभिज्ञता की स्थिति में झेल रहे हैं। रामशरण, प्रहलाद (2004, पृ. 166)11 इस आधुनिक दासता का खुलासा इसी संदर्भ में करते हैं।   

किसनसिंह एक आधुनिक पात्र है। उसका मानना है कि आदमी जिस दिन प्रश्न करना छोड़ देता है, उसकी मृत्यु उसी दिन हो जाती है। किसन युवक है और कुन्दन की तुलना में उसमें अत्यधिक उत्साह है। वह अपने मज़दूर साथियों की विकट स्थिति को परिवर्तित करने का प्रण लेता है। किसन अपने हर प्रश्न को गंभीर मानकर चलता है जबकि उसके पिता, रघुसिंह अपने बेटे की इस प्रवृत्ति को नादान मानते हैं (अनत, 1997, पृ. 39)12 । प्रश्न करने की यह प्रवृत्ति स्वयं अनत की है। अन्याय के विरोध में यदि वे प्रश्न नहीं कर पाते तो उनका मन तिलमिला जाता है। प्रश्न उठाने की प्रक्रिया में ही जीवन की क्रियाशीलता निहित है। इसलिए लेखक ने किसन को अपने प्रतिनिधित्व के रूप में इस रचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका दी है। किसन कई बार इस प्रश्न से आतंकित रहता रहा कि इन हाथों को अभी और कब तक इसी तरह पत्थर के नीचे रहना है? (अनत. 1997, पृ. 44)13

चुप्पी की यह स्थिति मात्र किसन के गांव में ही नहीं थी बल्कि यह हर गांव की सामान्य स्थिति बन गई थी। भारतीय आप्रवासी निष्क्रिय हो चले थे, शोषण उनके जीवन का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा था। अनत (1997, पृ. 44)14 लिखते हैं बिना दीवारों की इस चारदीवारी में सभी मज़दूर कैदी थे। सभी के हाथ-पांव बँधे थे। सभी के होंठ सिले हुए थे। जीभ जकड़ी हुई थी।

किसन इस यथास्थिति का सामना नहीं कर पा रहा था। यह खामोशी उसके मन को उद्वेलित करती जा रही थी और वह किसी भी तरह से इस गुफ़ा से बाहर निकलना चाहता था। वह मानसिक स्तर पर यह शोषण झेल रहा था। अनत (1997, पृ. 44)15 इस पात्र की प्रगतिशीलता पर फोकस करते हुए उसकी मन:स्थिति को हमारे सामने रखते हैं।

अभिमन्यु अनत मज़दूरों की निरीहता भरी स्थिति के लिए मालिकों के अत्याचारों को ही एकमात्र कारण नहीं स्वीकारते हैं। वे शोषितों पर भी प्रश्न करते हैं। गांधीजी के विचारों का समर्थन करते हुए (‘अत्याचार सहने वाले भी पाप के अधिकारी होते हैं’) लेखक ने मज़दूरों की विवशता तथा विरोध न करने की उत्साह को भी उनकी त्रासदी का कारण बताया है। उनमें शक्ति फूँकने के उद्देश्य से उन्हें प्रगतिशील विचारों के वाहक बनाए गए। विद्रोह करने की असमर्थता के कारण, शोषित मज़दूर के कारूणिक अंत का चित्रण लेखक काव्यमयी ढंग से करते हैं (अनत. 1997, पृ. 66)16   इस प्रसंग से संघर्ष का पहला चरण स्वयं मज़दूरों की विवशता, उनकी चुप्पी एवं उनकी असमर्थता से उत्पन्न उनकी नकारात्मक-निराशावादी मानसिकता से प्रारंभ होना चाहिए। किसन भी महसूसने लगा था कि वह स्थान एक बैठक ही होगा जहाँ से एक संघर्ष को पूरी सश्क्तता के साथ आरंभ किया जा सकता था। (अनत. 1997, पृ. 69)17  

इस प्रकार की उद्घोषणाएँ तत्कालीन शोषण से भरी स्थितियों में बहुत होती रहीं परंतु हर बार विद्रोह करने पर भारतीय मज़दूर इसलिए असफल हो जाया करते थे क्योंकि ऐसी भावनाएँ दीर्घ समय तक टिकती नहीं थीं। इसके पीछे कारण यह है कि सभी भारतीय आप्रवासियों को एक सूत्र में बाँधने वाली संगठन शक्ति प्राय: अनुपस्थित थी। इसलिए किसन उन शोषितों के शोषणरहित भविष्य के लिए सभी को व्यवस्थित रूप से संघर्ष करने की मांग करता है। संगठन एक ऐसी शक्ति है जिसके समक्ष किसी भी प्रकार की सत्ता टिक नहीं पाती है। इतिहास द्वारा दिया गया यह मूलमंत्र मात्र शिक्षितों तक ही सीमित नहीं है, अपितु जिसने भी इसकी शक्ति को पहचाना, उसने किसी-न-किसी रूप में परवर्ती काल में इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया। भारतीय आप्रवासियों में संघर्ष की शक्ति-सम्पन्न उत्साह को जागृत कराने हेतु, किसन उनका नेतृत्व करता है। (अनत. 1997, पृ. 73)18

इन्हीं प्रकार की भावनाओं में उन प्रताड़ित भारतीय आप्रवासी मज़दूरों की प्रगतिशीलता निहित है। अपने भविष्य को परिवर्तित करने की सकारात्मक तीव्र इच्छा अन्य सामान्य जनों में जागृत करने वाले लोग बहुत कम ही हुआ करते हैं। इस वर्ग के लोगों का एक महत्वपूर्ण पात्र आलोच्य ग्रंथ में किसनसिंह है जो संगठन पर बल देते हुए सभी गाँवों में स्थित भारतीय मज़दूरों के बीच संपर्क को संघर्ष की पहली सीढ़ी मानता है। उसके अनुसार यदि अन्य ग्रामों के लोगों में एक साथ सामूहिक रूप से विद्रोह करने की शक्ति फूँकी जाए तो निस्सन्देह उपनिवेशवादी क्रूर मानसिकता को ढहने में समय नहीं लगेगा।

विचारों में प्रगतिशीलता का आह्वान वास्तव में शोषण की बेड़ियों से मुक्त होने का एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिससे न केवल शोषण का अंत होता है बल्कि उस शासकीय सत्ता पर आधिपत्य पाने की संभावना भी रहती है। मानसिक तौर पर बने दासत्व की नई प्रवृत्तियों को उजागर करने का कार्य एक प्रगतिशील लेखक ही कर सकता है। इस दायित्व को अभिमन्यु अनत ने पूरी तरह से निभाया है। नारी की स्थिति के विषय में इस देश ने पर्याप्त प्रगति तो की परंतु आज भी समानता व नारी पर किए जाने वाले शोषण के नए रूपों पर भी सरकार की ओर से प्रगाढ़ प्रतिबद्धता आवश्यक है। एक रिपोर्ट के (2010, Section 6.3)19 अनुसार मॉरीशस की सरकार को नारी के अधिकारों के संरक्षण हेतु अनेक चुनौतियों का सामना करना होगा।

लाल पसीना में प्रगतिशील चेतना को अनेक स्तरों पर विश्लेषित किया गया है। प्रगतिशील दृष्टिकोण के संवाहक, अभिमन्यु अनत ने अपनी प्रगतिशील चेतना के अंतर्गत अनेक ऐसे प्रश्न उठाए हैं जिनसे मानवीयता पर प्रश्न-चिह्न लग जाता है। रूढ़ियों के परित्याग, नारी की अस्मिता की रक्षा, शोषण का विरोध, संगठन की भावना आदि ऐसे अनेक पहलू हैं जिनपर लाल पसीना  में कलम चलाते हुए अनत ने अपनी प्रगतिशीलता की पहचान दी है। साथ ही उन्होंने भारतीय आप्रवासी मज़दूरों के कष्टप्रद जीवन का भी जीता-जागता दस्तावेज़ इस उपन्यास में प्रस्तुत किया जहाँ पर उनपर शोषण के हर संभव माध्यम डाले जाते थे। इन विपरीत परिस्थितियों से अपनी सांस्कृतिक चेतना को बचाते हुए मज़दूरों के संघर्ष और विरोध की पृष्ठभूमि में अभिमन्यु अनत की प्रगतिशील विचारदृष्टि सामने आती है जो उनकी इस पंक्ति से सिद्ध होती है कि लेखक की मृत्यु हो जाती है परंतु उसकी रचनाएँ हमेशा जीवित रहती हैं; मेरी मृत्यु के बाद भी यदि मेरी रचनाओं से पाठकों का कोई लाभ हो सके तो यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात होगी। (Leon, T, 2007)20

संदर्भ

1. गोयनका, कमल किशोर (सं.),1999, अभिमन्यु अनत: प्रतिनिधि रचनाएँ, दिल्ली 52, नटराज प्रकाशन.

…अभिमन्यु अनत जैसी बहुमुखी प्रतिभा, साहित्य और जीवन में एकरूपता, अस्मिता और संस्कृति की रक्षा का युद्ध, सत्ता से जुझारू संघर्ष, आम आदमी के सुख-दुःख के प्रति इतनी कठोर प्रतिबद्धता, देश के समकालीन एवं युवा लेखकों की पीढ़ी को सहयोग, विश्व-मंच पर प्रतिष्ठा तथा भारत में लोकप्रियता किसी अन्य हिंदी साहित्यकार ने इतने ठोस रूप में अभी तक नहीं प्राप्त की थी।

2.  तिवारी, श्यामधर, 1984-85. अभिमन्यु अनत: व्यक्तित्व और कृतित्व. आगरा 2: अभिनव प्रकाशन.

3. गुप्त, गणपतिचन्द्र, 1984-85, प्राक्कथन. अभिमन्यु अनत: व्यक्तित्त्व  एवं कृतित्त्व.

4. तिवारी, श्यामधर, 1984-85. अभिमन्यु अनत: व्यक्तित्व और कृतित्व. आगरा 2: अभिनव प्रकाशन.

5. वही

6. निर्मम, हेमराज, 1993. मॉरीशस के हिंदी उपन्यासों का मूल्यांकन. दिल्ली 110006, प्रेम प्रकाशन मंदिर.

7. पोटा, शारदा, 1996. अभिमन्यु अनत का कथा साहित्य. उदयपुर 313002: शिवा पब्लिशर्स डिस्ट्रीब्यूटर्स.

8. कालीचरण, जनार्धन, 2001. अभिमन्यु अनत का उपन्यास-जगत: एक समीक्षा. हिंदी बुक सेंटर, दरिया गंज, दिल्ली 2.

भारत-भूमि से दूर मौर्य्य शीर्ष (मॉरीशस) द्वीप में हिंदी का एक साधक वर्षों से साधना करता हुआ हिन्दी-साहित्य की श्रीवृद्धि में संलग्न है; उसने विगत दो दशकों में लगभग एक दर्जन उपन्यास, दो कहानी-संग्रह, अनेक नाटक एवं काव्य-संग्रह हिंदी को अर्पित किये हैं, फिर भी भारत में बहुत थोड़े हिंदी साहित्यकार एवं आलोचक होंगे जो कि इस साहित्य से सम्यक रूप में परिचित हों। 

9. Fields, Belden. A, 2003. Rethinking Human Rights for the New Millennium. New York 10010: Palgrave Macmillan.

When structures, institutions, and practices are outpaced by developmental possibilities and aspirations, we have what I will call ‘domination’. Domination is the exercise of power that frustrates the development of individuals, segments of societies, or entire societies. Domination confers benefits, whether they be economic, political or the mere psychic satisfaction of controlling the fate of others, to the dominators.

10. गौतम, लक्ष्मणदत्त, 1972. आधुनिक हिन्दी-कहानी-साहित्य में प्रगति-चेतना. दिल्ली 7: कोणार्क प्रकाशन.

11. रामशरण, प्रह्लाद, 2004.मॉरीशस का इतिहास. दरियागंज, नई दिल्ली 110002, वाणी प्रकाशन.

बेकारों को नौकरी देना, 44% आज़ादी विरोधी मतदाताओं को देश के निर्माण कार्य में लगाना, बुद्धिजीवी तथा पूंजीपतियों को देश छोड़ने से रोकना, देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ढाँचे में स्थिरता लाना, निजी उद्योगों के संचालकों के मन से राष्ट्रीयकरण का भूत भगाना तथा यूरोपीय उद्योगपतियों द्वारा मॉरीशस में नए उद्योग खुलवाना आदि।

12. अनत, अभिमन्यु, 1997. लाल पसीना. दिल्ली 2, राजकमल प्रकाशन.

13. वही, पृ. 44

उसने तय कर लिया था कि उसके प्रश्नों के उत्तर मिलें न मिलें, वह प्रश्न करता रहेगा। अपने इर्द-गिर्द के लोगों की हालत को देखते हुए उसे लगता कि इन सारे लोगों ने अपने प्रश्न करने की ताकत को भुला दिया है। उनके अभावग्रस्त जीवन का यही कारण था। अपनी जीभ को भीतर चिपका कर वे चुपचाप दारुण दण्डों को झेलते आ रहे थे। किसन बार-बार पूछता – यह चुप्पी क्यों?

14.  वही, पृ. 44

15.  वही, पृ. 44

दीवारें दीखने पर उन्हें फाँदा जा सकता था। बेड़ियाँ होने पर उन्हें तोड़ा जा सकता है, पर जहाँ ये चीजें बाहर न होकर आदमी के भीतर हों वहाँ उन्हें कैसे फाँदा और तोड़ा जा सकता है? ये प्रश्न किसन के थे।

16. वही, पृ. 66

एक लिज़लिज़ेपन की स्थिति को वह झेलता रह गया था। उसे अपने आसपास की बेचारगी चीत्कारती-सी लगी थी। उसके भीतर का सीला आकोश एक ठंडे पड़े विद्रोह से अधिक कोई दूसरा रूप ले ही नहीं सका था। उसे लगा था कि जतन मौत से नहीं मरा था। उसे उसकी अपनी निरीहता, बेबसी और ठण्डेपन ने मारा था। सैकड़ों लोग दो के सामने विकलांग थे। हत्यारा अगर कोई था तो ज़ुल्म ढानेवाला नहीं, बल्कि उसके अपने ही लोगों की असमर्थता!

17. वही, पृ. 69

18. वही, पृ. 73

नहीं! हज़ारों की संख्या में होते हुए भी अगर हम शक्तिशाली नहीं बन सके, इस देश को फल-फूल देकर भी अगर हम आज ही की सी स्थिति में रहना मान लें, तो बस वे हाथ हमारे ऊपर उठते रहने से कभी नहीं थमेंगे और तब सचमुच ही आनेवाले हर कल के लिए हम कमज़ोर रह जाएँगे।

19. Zenawi, Meles, July 2010.Country Review Report No. 13, African Peer Review Mechanism, Republic of Mauritius.

The Mauritian constitution prohibits any form of discrimination based on gender. Having subscribed to the provisions of the Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination against Women (CEDAW), Mauritius has taken further action to promote and protect the rights of women by passing a Sexual Discrimination Act (2002), and by setting up a Ministry of Women’s Rights, Child Development and Family Welfare (MWRCDFW). Despite these efforts, women’s participation in political and governmental affairs, as well as public employment, is still very low, and domestic violence is rife.

20. Leon, Thierry, Le Dimanche (Tranche de Vie), Interview with Abhimanyu Unnuth on 15 April 2007. L’écrivain n’écrit jamais en vain. 

Dr Vinaye Kumarduth Goodary

Senior Lecturer, MGI, Moka,

Mauritius

vinaye08@gmail.com

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DrKumarduth Goodary (Vinaye) joined MGI in 2001 as part time lecturer and is presently SeniorLecturer at the Sol of Indian Studies with about 18 years of experience inteaching and research at tertiary level. He has been the Head of the LanguageResource Centre from 2013 to 2015 having initiated numerous projects likeCurriculum development in all Asian Languages, creation of multimediamaterials, ICT Handbooks among others. He completed his BA and MA in Hindi atthe University of Delhi from 1995 to 2000. He completed his MPhil and PhD inthe field of Mauritian Hindi Literature at the University of Mauritius in 2015.He holds a Master’s degree in Educational Leadership and Management from theUniversity of Technology. He also holds a Project Leadership Certificate andhas completed the African Leadership in ICT programme (ALICT), an initiativeunder the UN Task Force in 2014. Actively involved in online education,e-learning, emerging technologies and conducting workshops in ICT & Hindi,he manages his own academic websites (Moodle) and blogs. He has presentedresearch papers both nationally and internationally. He also contributes at CPElevel as Joint Chief Examiner at the Mauritius Examinations Syndicate. Hisinterests vary from creative writing, leadership skills and motivationalpedagogies to multi-disciplinary research. He is the presenter of Srijan – YourRendez-vous with Culture, a weekly talk show programme aired on MBC 1 TV since2015 with some 60 interviews done with scholars in Hindi. He has also acted inlocal serials and short films in Hindi, Creole, Bhojpuri, French and English.He has directed a short film Reperkision based on domestic violence and won 3rdprize at national level. He wrote a film on mother’s day named Merci which wasprojected at the Jaipur International Film Festival in which he played the leadrole. He has been scriptwriting for numerous films and serials. Having authoredAshok ki Chinta, a contemporary play, he won best local writer and best actorawards for the National Drama Competition. He performed at the 8thWorld Theatre Olympics for the National School of Drama, India in Jaipur &Delhi in March 2018 for Ashok ki Chinta. He has been awarded at severaloccasions for his contribution to Hindi in Mauritius.

Dr Kumarduth Goodary

Senior Lecturer, Mahatma Gandhi Institute,

Mauritius

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